किसानों के लिए मुसीबत बना छाचा, झुलसा और उखटा रोग जीरे की फसल को नुकसान

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किसानों के लिए मुसीबत कम होने का नाम ही नहीं ले रही है करीब की फसल में अतिवृष्टि या फिर अल्प वर्षा होती है लेकिन अब रबी की फसल में जीरे की फसल के लिए अनेक प्रकार की बीमारी फसल को लगने का खतरा रहता है कुछ ऐसा ही किसानों के साथ बीत रहा है जीरे की फसल में हो रहे भारी नुकसान के बारे में आज हम जानेंगे।

मरुस्थल की कठोर जलवायु के बीच भी जहां उपजाऊ बढ़ती है कई अनमोल फसलें देता है इन्हीं में से एक प्रमुख फसल जो बाड़मेर जैसलमेर जालौर और जोधपुर जिले की वैश्विक पहचान दिलाने वाली जीरा हर भारतीय रसोई का हिस्सा है, रसोई में तड़का लगाने के लिए हो या किसी व्यंजन का स्वाद बढ़ाने के लिए मसाले की दुनिया में जीरे का विशेष भाग है क्योंकि इसमें अनेक औषधीय गुण होते हैं।

बाड़मेर के किसान बुधराम भादू कातरला ने बताया कि जीरे की खेती अलग-अलग प्रकार की मिट्टी में हो सकती है रेतीली मिट्टी से लेकर चिकनी मिट्टी और दोमट मिट्टी विशेष कर कार्बनिक पदार्थों से भरपूर मिट्टी जीरे की अधिक फसल उत्पादन के लिए उपयुक्त होती है।

उन्होंने बताया कि जरा ठंडी जलवायु में उगने वाली फसल है जिसकी बुवाई नवंबर के तीसरे सप्ताह से दिसंबर के पहले सप्ताह तक की जाती है फसल तैयार होने पर जब इसके बीज और पौधे भूरे रंग के हो जाते हैं तो इसकी कटाई की जाती है।

इसके बाद पौधों को सुखाकर थ्रेसर महंगा ही कर बी को अलग किया जाता है बीजों को अच्छे से सुखाकर साफ बोर में सुरक्षित रखा जाता है और उसके बाद अच्छे भाव होने पर मार्केट में बेचा जाता है।

कृषि विशेषज्ञ सहायक आचार्य डॉक्टर रतनलाल शर्मा ने कहा कि जरा न केवल बाड़मेर,जालौर,जैसलमेर, जोधपुर की पहचान है बल्कि यह किसने की आय का एक प्रमुख स्रोत भी है।

जीरे की फसल में तीन प्रमुख रोग पाए जाते हैं जिसमें छाचा रोग झुलसा रोग और उखटा या बिल्टी रोग शामिल है यह सभी रोग फसल के लिए बेहद हानिकारक साबित हो सकते हैं।

रोगों को बचाव के लिए खेत प्रति हेक्टर 8 से 10 टन गोबर की खाद डालें खेत की सफाई का विशेष ध्यान रखें और खरपतवार समय-समय पर हटाते रहे गर्मियों में खेत की गहरी जुताई करें।

जीरे की जैविक खेती के जरिए आप 100 किलो सड़े हुए गोबर में एक किलोट्राइकोडर्मा मिलाइए और इसे छाया में 10 से 15 दिन तक रखें इसके ऊपर हरी परत बनती है इस फसल के लिए रोगों को नियंत्रित करती है।