शैलजा अस्पताल के बिस्तर पर बैठी खिड़की के बाहर देख रही थीं। सूरज की हल्की किरणें कमरे में प्रवेश कर रही थीं, लेकिन उनके मन में अंधेरा ही अंधेरा था। कुछ दिन पहले जब डॉक्टर ने बताया था कि उनकी दोनों किडनियां मात्र दस प्रतिशत ही काम कर रही हैं, तो उन्हें लगा था कि अब उनका जीवन समाप्त होने वाला है। वह घबरा गई थीं। अभी तो बेटी की शादी भी नहीं कर पाई थीं।
उनके पति और बेटी ने उनकी किडनी से मैच कराने की कोशिश की, लेकिन डॉक्टर ने साफ़ कह दिया कि दोनों की किडनी ट्रांसप्लांट के लिए उपयुक्त नहीं है। उनके बेटे नित्यम और बहू कल्पना की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। बेटे से तो उम्मीद थी, लेकिन बहू से नहीं। उन्होंने कभी कल्पना को एक बहू की तरह स्वीकार ही नहीं किया था। उसे कम दहेज लाने वाली और कमजोर स्वभाव की मानकर हमेशा उपेक्षा की। जब वह चुप रही, तो उन्होंने और उनकी बेटी ने उसे ताने मारने शुरू कर दिए।
कल्पना ने हर दर्द को सह लिया, लेकिन एक दिन जब उसने बुखार में तपते हुए भी कोई शिकायत नहीं की, तो शैलजा ने गुस्से में आकर उस पर हाथ उठा दिया। उस दिन उनके बेटे नित्यम ने पहली बार माँ से ऊँची आवाज़ में बात की थी।
मां आपको क्या हक है कल्पना को मारने का
शैलजा सन्न रह गई थीं। बेटे की आँखों में अपनी पत्नी के लिए चिंता देखकर उनका गुस्सा बढ़ गया था, लेकिन फिर भी कल्पना ने नित्यम को शांत कर दिया था।
मुझे आप और पापा जी इतना प्यार करते हैं, मतलब इस घर का पचास प्रतिशत तो प्यार मुझे मिल ही जाता है
कल्पना मुस्कुरा दी थी। लेकिन इस बार शैलजा की आँखों में आँसू थे। शायद पहली बार उन्होंने महसूस किया था कि उन्होंने कितनी नफ़रत भरी ज़िंदगी जी है।
जब अस्पताल में एक अनजान दाता से उन्हें किडनी मिली और उनका ऑपरेशन सफल हो गया, तब भी उनका मन विचलित था। कौन था जिसने उन्हें जीवनदान दिया था?
आज जब वह अस्पताल से घर लौट रही थीं, तो बेटे-बहू को न पाकर उनका दिल भारी हो गया। बेटे ने फोन तक नहीं किया। गाड़ी में बैठते ही उन्होंने नित्यम को फोन मिलाया, लेकिन फोन बंद था।
घर पहुंचते ही जैसे ही उन्होंने दरवाजा खोला, सामने का दृश्य देखकर उनकी आँखें भर आईं। नित्यम और कल्पना उनके स्वागत में खड़े थे। घर को फूलों से सजाया गया था। उनके लिए एक कुर्सी तैयार की गई थी, जिस पर बैठते ही कल्पना उनके पैरों के पास बैठ गई।
“माँ, अब आप बिल्कुल ठीक हो जाएंगी। आपको चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं है,” कल्पना ने उनका हाथ पकड़कर कहा।
शैलजा की आँखों से आँसू बह निकले।
“मैंने तुझे हमेशा तकलीफ़ दी, फिर भी तूने मेरा इतना ख्याल रखा?”
कल्पना मुस्कुराई, “आप मेरी माँ हैं। माँ से शिकायत नहीं की जाती, बस प्यार किया जाता है।”
शैलजा को अब समझ आ गया था कि उन्हें जीवनदान देने वाली कोई और नहीं, बल्कि कल्पना ही थी। उन्होंने कल्पना का हाथ पकड़ लिया और पहली बार अपने दिल से उसे अपनी बहू नहीं, बल्कि अपनी बेटी मान लिया।

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