निम्नलिखित में से किस ब्रिटिश अधिकारी ने बूंदी के शासक राव राजा बिशन सिंह पर दबाव डालकर सती प्रथा के विरुद्ध वातावरण तैयार करने में सफलता प्राप्त की?

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(1) जेम्स टॉड

(2) सी.ई. बर्टन

(3) जॉन लुडलो

(4) रॉबिन्सन

सही उत्तर – जेम्स टॉड

सता प्रथा का रोकने का प्रयास गर्वनर जनरल विलियम बैटिक ने राजपूताना रियासतों को अनेक पत्र लिखे जिसमें उन्होन सती प्रथा को बन्द करने के लिये प्रेरित किया।

अभिलेखागार में इस सम्बन्ध में अनेक दस्तावेज उपलब्ध है। 1844 तक ब्रिटिश अधिकारी विधि निर्माण के लिये दबाव की अपेक्षा परामर्श और प्रेरणा की नीति का अनुसरण करते रहे, यह प्रयास असफल रहे। इस अवधि में दक्षिण पूर्व राजस्थान की बूंदी, कोटा और झालावाड़ के शासकों व रियासतों के कैप्टन रिचर्डसन ने खरीता (आदेश) भेजा और सती प्रथा रोकने के कानून बनाने के निर्देश दिए।

ब्रिटिश कम्पनी अभी प्रत्यक्ष हस्तक्षेप की नीति के विरोध में थी। अतः रिचर्डसन के खरीता भेजने के प्रयासों को ब्रिटिश अधिकारियों ने विरोध किया अवधि में कम्पनी अपनी स्थिति रियासतों में मजबूत होने के कारण अहस्तक्षेप की की पर विचार कर रही थी।

इसीलिए एजेन्ट त्यागकर जयपुर की अध्यक्षता में एक सरक्षक सामात गाठत का गई और सती प्रथा निषेध के लिये मंथन किया, इसके लिये उन्होंने सामन्तों और स्थानीय अधिकारियों का सहयोग लेना उचित समझा।

सती प्रथा उन्मूलन के प्रयास :-

1844 में जयपुर संरक्षक समिति ने एक सती प्रथा उन्मूलन हेतु एक विधेयक पारित किया यह प्रथम वैधानिक प्रयास था जिसका समर्थन नहीं तो विरोध भी नहीं हुआ अतः इससे प्रोत्साहित होकर एजेन्ट टू द गर्वनर जनरल (ए.जी.जी.) ने उदयपुर, जोधपुर, बीकानेर, सिरोही, बांसवाड़ा, धौलपुर, जैसलमेर, बूंदी, कोटा और झालावाड़ में स्थित ब्रिटिश पोलिटिकल एजेन्ट को निर्देश दिये कि वे अपने व्यक्तिगत प्रभाव का उपयोग करते हुए शासकों से सती उन्मूलन हेतु नियम पारित कराने का प्रयास करे।

यह प्रयास कई रियासतो में सफल रहा, डूंगरपुर, बांसवाड़ा और प्रतापगढ़ ने 1846 में सती प्रथा को विधि सम्मत नहीं माना। इसी क्रम में 1848 में कोटा और जोधपुर में भी और 1860 में अनेक प्रयासो के बाद मेवाड़ ने भी सती प्रथा उन्मूलन हेतु कानून बनाये गये।

उक्त कानून का उल्लंघन करने पर जुर्माना वसूल करने की व्यवस्था की गई। 1881 में चार्ल्स वुड़ भारत सचिव बना, वुड ने कुरीतियों को रोकने के करने के प्रयासों को प्रभावहीन मानते हुए ए.जी.जी. राजपूताना को गश्ती पत्र भेजकर निर्देश दिये कि कुरीतियों को रोकने के लिये जुर्माने की अपेक्षा बन्दी बनाने जैसे कठोर नियम लागू किये जायें।

अतः 1861 में ब्रिटिश अधिकारियों ने शासकों को नये कठोर नियम लागू करने की सूचना दी. जिसके अनुसार सती सम्बन्धित सूचना मिलने पर कारावास का दण्ड दिया जा सकता है, जुर्माने के साथ शासक को पद से हटाने और उस गाँव को खालसा किया जा सकता है।

यदि शासक इन नियमों की क्रियान्विति में लापरवाही दिखाते हैं तो उन्हें दी जाने वाली तोपों की सलामी संख्या घटाई जा सकती है। इस प्रकार ब्रिटिश सरकार की दबाव, नीति और स्थानीय अधिकारियो के सहयोग से 19′ वीं सदी के अन्त तक यह कुरीति नियंत्रित हो गई कुछ छुट-पुट घटनाये अवश्य हुई।

सरकार के अतिरिक्त सामाजिक जागृति के भी प्रयास हुये। स्वामी दयानन्द सरस्वती का राजस्थान आगमन इस दृष्टि से महत्त्वपूर्ण रहा। उन्होने सती प्रथा को अनुचित एवं अमानवीय मानते हुए निन्दनीय कृत्य बताया।

उन्होंने शास्त्रों के आधार पर इसका विरोध किया और समाज को एक नई दिशा प्रदान की। आजादी के बाद भी सितम्बर 1987 में राजस्थान उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में सती प्रथा को विधि सम्मत नहीं माना। न्यायालय ने अपने मत के समर्थन में पर्याप्त प्रसंगों को उद्धृत किया।

कर्नल जेम्स टॉड नहीं बूंदी के शासन रहा हो राजा बिशन सिंह पर दबाव डालकर सती प्रथा के विरोध में वातावरण तैयार किया था इसीलिए इस प्रश्न का सही उत्तर होगा।

प्री-इंडिपेंडेंट कल में कैप्टन रिचर्डसन का नाम सामने आता है। उन्हें कोटा बूंदी और झालावाड़ के शासको को सती प्रथा को वैध घोषित करने के लिए एक परिपत्र सर्कुलर भेजने के लिए जाना जाता है। यह घटना 19वीं शताब्दी के मध्य की है। जब ब्रिटिश एजेंट ने रियासतों पर दबाव डाला कि वह इस प्रथा को रोके।

अलंकिक कर्नल जेम्स टॉड की पुस्तक एनल्स एंड एंटीक्विटीज ऑफ राजस्थान में उल्लेख है। की बंदी के राजा बुध सिंह (बिशन सिंह) की मृत्यु के बाद 84 महिलाओं ने सती प्रथा का पालन किया यह घटना 18वीं शताब्दी की है। और दर्शाती है, कि बूंदी में यह प्रथम बड़े पैमाने पर मौजूद थी लेकिन कर्नल जेम्स टॉड के कहने पर इस प्रथा पर रोक लगी थी।

टॉड का कार्यकाल ही 1818 से 1822 के बीच रहा था। सती प्रथा के औपचारिक उन्मूलन से पहले का था, और वह इन नीतिगत बदलावों से सीधे जुड़े हुए नहीं थे। तो यह कहना भी गलत है, कि टॉड ने बूंदी में सती प्रथा के खिलाफ आवाज उठाई हां यह हो सकता है, कि उन्होंने सती प्रथा के लिए लेखन किया हो और आखिरी बात की हो। वह इस बात को स्वीकार करते हैं, की बंदी शासन की मौत के बाद यहां की महिलाओं ने सती प्रथा का पालन किया।

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